ताकत मिल सके। यह भय कि एक सरकारी सन 2002 में एक विधेयक पारित करके हरियाणा ने लोकायुक्त की स्थापना की एक ईमानदार कोशिश की थी। उद्देश्य था कि सरकारी अधिकारियों, जिन पर भ्रष्टाचार या फिर दुयवहार आदि के आरोप लगें, उनकी ईमानदारी से जांच की जा सके। यह सुशासन के लिए एक बहुत अच्छा शगुन था कि लोग अपनी समस्याओं और शिकायतों की बाबत, बिना कचहरी का चक्कर लगाए सही कार्रवाई की उम्मीद कर सकेंगे। लेकिन विडंबना है कि लोकायुक्त के आदेशों के बावजूद प्रदेश सरकार अपने वरिष्ठ अधिकारियों पर कार्रवाई करने मेंआनाकानी कर रही है। हरियाणा विधानसभा में प्रस्तुत 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 25 ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं, जिन पर अब तक कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। लोकायुक्त की कार्यकारिणी समिति ने कहा है कि जिन मामलों में लोकायुक्त ने कार्रवाई की अपेक्षा की हो, उन पर कोई अनुशासनिक कार्रवाई की रिपोर्ट (एटीआर) न भेजना न सिर्फ न्याय का अपमान है बल्कि इससे भ्रष्ट कर्मचारी बिना सजा के छूटते जाएंगे। एक पुलिस कमिश्नर के खिलाफ यह शिकायत सुनिश्चित हुई है कि उन्होंने एक एमएलए के खिलाफ शिकायत को लगभग साल भर तक टाला, जिसकी वजह से शिकायतकर्ता को न्याय मिलने में काफी देरी हुई ।एक दूसरे केस में नगर नियोक्ता द्वारा मनचाहेबिल्डर्स को गैरकानूनी निर्माण की अनुमति देने की वजह से विभाग उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर सका जबकि एटीआर भेजने का निर्धारित समय 3 महीने है। सरकार की अनदेखी से जवाबदेही कहीं किसी अंधकार में खो गई है। ऐसे में लोकायुक्त के आदेशों का पालन सुनिश्चित करना चाहिए, जिससे कि आगे कार्य करने की ताकत मिल सकेयह भय कि एक सरकारी|अधिकारी के खिलाफ बोलना खतरनाक हो सकता है, दूर किया जाना चाहिए। लोकायुक्त ने विधेयक में परिवर्तन की भी सिफारिश की है|कि यदि लोकायुक्त के आदेश पर 4 महीनों के|भीतर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो लोकायुक्त कार्यालय स्वयं सीधे कार्रवाई कर सके। सरकार लोकायुक्त को दिखावे का प्राधिकारी बनाने का रवैया छोड़े और उसे ताकत दी जाए ताकिकार्यपालिका पर अंकुश लग सके।
नाम का लोकायुज्त